धरने पर बैठी दलित छात्रा, PhD में नहीं मिला दाखिला,बोली- 15वा रैंक छोड़कर 18 रैंक वाले का लिया एडमिशन

Dalit Yug: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) एक बार फिर विवादों में घिर गया है। मामला PhD दाखिले से जुड़ा है, जहां ईडब्ल्यूएस श्रेणी की दलित छात्रा अर्चाता सिंह ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर भेदभाव का गंभीर आरोप लगाया है। अर्चाता का कहना है कि उसने हिंदी विभाग के अंतर्गत शोध प्रवेश परीक्षा (रीट 2024-2025) में ईडब्ल्यूएस कोटे में 15वीं रैंक हासिल की, फिर भी उसे प्रवेश नहीं दिया जा रहा है, जबकि 18वीं रैंक वाली अभ्यर्थी, जो एबीवीपी से जुड़ी है, को प्रवेश दिया जा रहा है।

पूरा मामला क्या है?

उत्तर प्रदेश के एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली अर्चाता सिंह ने बताया कि उन्होंने 5 मार्च 2025 को हिंदी विभाग में शोध साक्षात्कार दिया था। उस समय उनके पास नया ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं था, इसलिए पिछले साल का प्रमाण पत्र ही जमा किया था। बाद में, 29 मार्च को ईमेल के माध्यम से तथा 1 अप्रैल को व्यक्तिगत रूप से नया प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया।

अर्चाता का कहना है कि उन्होंने सभी दस्तावेज समय पर जमा करा दिए थे, फिर भी उनका नाम अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया। वे फिलहाल प्रतीक्षा सूची में पहले नंबर पर हैं। यदि प्रतीक्षा सूची जारी होती है तो उनका प्रवेश निश्चित है, लेकिन प्रशासन सूची जारी करने से बच रहा है।

विरोध और समर्थन

इस अन्याय के खिलाफ अर्चाटा ने विश्वविद्यालय परिसर में धरना शुरू कर दिया है। कई अन्य छात्र भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। छात्रा का कहना है कि उसने कुलपति, रजिस्ट्रार व अन्य उच्चाधिकारियों को कई बार पत्र लिखा है, लेकिन कहीं से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। अर्चाटा ने सवाल उठाया है कि 18वें स्थान वाले उम्मीदवार को वरीयता क्यों दी जा रही है?

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विश्वविद्यालय प्रशासन मौन

यहां तक ​​कि जब 15 अप्रैल को अन्य अभ्यर्थियों को दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलाया गया तो भी अर्चाता को नजरअंदाज कर दिया गया। उनका कहना है कि यह पूरी तरह अनुचित है, क्योंकि उन्होंने सभी दस्तावेज समय पर जमा करा दिए थे। छात्रा का दावा है कि उसे सिर्फ इसलिए नजरअंदाज किया जा रहा है क्योंकि वह किसी छात्र संगठन से जुड़ी नहीं है, जबकि दाखिला लेने वाला उम्मीदवार एबीवीपी से जुड़ा है।

इस मामले पर अभी तक बीएचयू प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे छात्रों में नाराजगी और बढ़ रही है। अर्चाता सिंह और उनके समर्थकों का कहना है कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे अपना विरोध प्रदर्शन तेज कर देंगे।

यह घटना उच्च शिक्षा संस्थानों में पारदर्शिता और समानता पर प्रश्न उठाती है तथा दिखाती है कि किस प्रकार राजनीतिक प्रभाव के कारण प्रतिभाशाली छात्रों की अनदेखी की जा रही है।

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